बेचारा ब्राह्मण, लालची व्यापारी और ढपोर शंख


ढपोर शंख की कहानी

एक बार एक गरीब ब्राह्मण भीख मांगकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। गरीबी से परेशान ब्राह्मण को किसी ने सुझाव दिया कि तुम समुद्र के पास  जाओ, सागर रत्नों की खान है।  कुछ रत्न दे देंगें जिससे तुम्हारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। यह सुनकर ब्राह्मण देवता समुद्र की ओर चल पड़े। कई दिनों तक चलते हुए और मार्ग में रात्रि विश्राम करते हुए  ब्राह्मण समुद्र के पास पहुंच गया।

वहाँ पहुँचकर ब्राह्मण ने समुद्र देवता से विनती की। आप रत्नों के भंडार हैं और मैं बहुत ही निर्धन ब्राह्मण हूँ।  मुझे परिवार चलाने के लिए पेट भरने लायक धन दीजिये जिससे मैं अपने परिवार का भरण पोषण कर सकूँ। ब्राह्मण की विनती सुनकर समुद्र देवता बोले आप निर्धन हो तो मुझसे ढेर सारे रत्न माँग सकते हो फिर भरण पोषण के लिए याचना कर रहे हो इससे मैं प्रसन्न हूँ। मैं आपको एक शंखी दे रहा हूँ जिससे याचना करने पर रोज आपको ५ रुपए मिलेंगें। 


समुद्र द्वारा शंखी प्राप्त कर ब्राह्मण बड़े हर्ष के साथ अपने घर को लौट गया। दिनभर की यात्रा के बाद शाम को ब्राह्मण ने एक बनिए के यहाँ विश्राम किया। ब्राह्मण ने बनिया से शाम की पूजा के लिए फूल, पानी, आदि की व्यवस्था करने का निवेदन किया। ब्राह्मण ने सोचा की क्यों न शंखी की जाँच की जाए। 

अब ब्राह्मण ने संध्या पूजन के बाद शंखनाद किया, और शंखी से पाँच रुपये की याचना की। शंखी ने ब्राह्मण को पाँच  रुपये दे दिए।

यह सब देखकर व्यापारी को लालच आ गया। बनिए के मन में विचार आया कि मैं इस शंख को किसी तरह ब्राह्मण से छल करके ले लूं। फिर मैं दिन भर खूब पूजा करूंगा और शंख बजाकर नगर का सर्वश्रेष्ठ नागरिक बनूंगा।


मन में ऐसा विचार कर वह अपने पुरोहित के यहां गया और उनसे उनका शंख माँग लाया। ब्राह्मण के सो जाने के बाद, उसने शंख बदल दिया।

अब ब्राह्मण घर आकर पूजा करके शंख से पांच रुपये मांगता है। शंख तो सही था नहीं जिससे उसे धन नहीं मिल पाया। ब्राह्मण पत्नी ने ब्राह्मण का बहुत उपहास किया। अब ब्राह्मण समुद्र पर क्रोधित हो गया और समुद्र के पास शिकायत के साथ पहुंच गया।  उसने समुद्र से शिकायत की, कि आपने मुझे केवल एक बार पांच रुपये देने वाली शंखी दिया है।   

समुद्र ने एक उदास ब्राह्मण से उसके यात्रा की कहानी सुनी। जब उसने कहा कि मैं रास्ते में एक व्यापारी के यहाँ रुका था  तो समुद्र देवता समझ गए कि व्यापारी ने ब्राह्मण को धोखा दिया है। समुद्र ने अब ब्राह्मण को एक बड़ा शंख दिया और कहा कि वह उसी घर में रात विश्राम करे। बनिया इस बार ब्राह्मण का अधिक स्वागत किया। उसे लगा कि ब्राह्मण को हमारे छल के बारे में पता नहीं है या इन्होंने मेरे द्वारा बदले गए शंख को परखा नहीं है नहीं तो वे हमारे घर पर क्यों रहेंगे। 


पहली बार की भाँति इसबार भी शाम की पूजा के बाद ब्राह्मण ने शंख से पांच रुपये मांगे। शंख ने कहा कि पांच क्यों ब्राह्मण देवता दस क्यों नहीं माँगते। 

फिर जब उसने दस रुपये मांगे तो शंख ने कहा कि दस रुपये ही क्यों बीस क्यों नहीं लेते। इसी तरह जब रकम ज्यादा हो गई तो ब्राह्मण ने कहा कि हम इसे घर जाकर ले लेंगे।

अब व्यापारी और अधिक चकित हुआ, यह  शंख  उस शंख से भी अधिक मूल्यवान था। बिना देर किए मौका मिलते ही शंख को शंखी से बदल दिया।
अब असली शंखी ब्राह्मण के पास और बड़ा शंख व्यापारी के पास आ गया था। लालची व्यापारी  ने अपनी पत्नी से कहा, आज शाम को मैं पूजा करूंगा। व्यापारी पूजा करके धन की कामना करता है और शंख उसे दुगना देने का लालच देता है। ऐसा करते करते जब  रकम थोड़ी ज्यादा हो जाती है तो व्यापारी गुस्से में कहता है, मुझे पैसे दो, अब मुझे और नहीं चाहिए।

तब शंख ने संस्कृत में कुछ ऐसा कहा
"पर हस्ते गदा शंखी पञ्च रूप्यकदायिनी अहम् ढपोर शंखोस्मि वदामि न ददामि च "


अर्थात पाँच रुपए देने वाली शंखी दूसरे के पास चली गयी है।  मैं ढपोर शंख हूँ बोलूँगा सिर्फ दूँगा नहीं। 


ढपोर शंख की कहानी - FAQ


कहानी में इस्तेमाल किए गए व्यक्तियों के नाम क्या हैं?


कहानी में प्रमुख व्यक्तियों के नाम ब्राह्मण, व्यापारी, और समुद्र देवता हैं।

कहानी का संगठन कैसा है?


कहानी एक गरीब ब्राह्मण के जीवन की कहानी है जो एक आशा के साथ समुद्र के पास रत्नों की खोज में निकलता है। उसकी यात्रा के दौरान उसे एक जादुई शंख मिलता है जो पाँच रुपये देने पर प्रतिदिन धन देता है। परंतु, लालच में अपने धर्म को भूल जाने के चलते उसकी यात्रा में उलझनें होती हैं।

शंख ने क्या संदेश दिया जब व्यापारी ने अधिक रकम मांगी?

जब व्यापारी ने अधिक रकम मांगी, तो शंख ने कहा, "पर हस्ते गदा शंखी पञ्च रूप्यकदायिनी अहम् ढपोर शंखोस्मि वदामि न ददामि च" अर्थात पाँच रुपए देने वाली शंखी दूसरे के पास चली गई है, मैं ढपोर शंख हूँ, बोलूँगा सिर्फ दूँगा नहीं। इससे स्पष्ट होता है कि शंख अधिक रकम मांगने की असम्मति व्यक्त कर रहा था।

इस कहानी में प्रमुख संदेश क्या हैं?


कहानी में मुख्य धाराओं में से एक संदेश है कि लालच और अहंकार मनुष्य को उसके धर्म से दूर ले जा सकते हैं। धन की लालसा मनुष्य को उसके नैतिक मूल्यों को भूलने के लिए प्रेरित कर सकती है।

ब्राह्मण और व्यापारी के कार्यों में क्या अंतर है?


ब्राह्मण धर्मग्राही और संतोषी है, जबकि व्यापारी लालची और अहंकारी है। ब्राह्मण ने अपने धर्म को समझा और स्वीकार किया, जबकि व्यापारी ने लालच में धर्म को भूल दिया।

क्या है शंख के प्रति ब्राह्मण की भावना?


ब्राह्मण के लिए शंख एक धर्मनिष्ठ प्रतीक है जो उसे उसकी आत्मनिर्भरता और संतोष की दिशा में ले जाता है। शंख ने उसे धन के लिए नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण और संतोष के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।

क्या है शंख के प्रति व्यापारी की भावना?


व्यापारी के लिए शंख धन की लालसा और अहंकार का प्रतीक है। उसके लिए शंख धन की प्राप्ति का साधन है, और उसके धर्म की परख नहीं है।

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