एक सरोवर
में काफी सारी मछलियां रहती थीं। सरोवर में प्रचुर जल था। जल में ख़ुशी ख़ुशी
रहती थी और बड़ी प्रसन्नता से जल क्रीणा करते हुए इस किनारे से उस किनारे
तक तैरते रहती थी।
एक बार ग्रीष्म ऋतू में भीषण गर्मी पड़ी सरोवर का
जल सूखने लगा। उस साल मानसून में बरसात भी नहीं हुई सरोवर में जल बहुत ही
कम हो गया। इससे मछलियों का जीवन कष्टप्रद हो गया.
सभी मछलिया अपने भविष्य के बारे में चिंतित रहा करती थीं।
एक
बगुला था जो सरोवर से मछलियों का शिकार किया करता था। एक दिन सरोवर
किनारे बैठ कर बगुला रोने लगा। किंनारे पर तैरती हुई मछलियों ने बगुले को
रोते हुए देखा और उससे रोने का कारण पूछा ? बगुले ने बताया की इस सरोवर
में बहुत ही कम जल शेष बचा है इससे तुम लोगों का जीवन संकट में आ गया है।
इसके अलावा एक और भारी संकट है जो टाला नहीं जा सकता। पास के गावँ के लोगो
ने अगले सप्ताह इसमें मछली पकड़ने के लिए जाल डालने की योजना बनाई है। मैं
इसी सब बातों से दुखी हूँ। भोली भली मछलियों को कपटी बगुले के बातों पर
विश्वास लगने लगा। मछलियों ने बगुले को अपना हितैषी जानकार उससे इसका
समाधान जानने के लिए कोई उपाय पूछा।
कपटी धूर्त बगुला तो इसी
प्रतीक्षा में था। बगुले ने कहा की अगर तुम सब अगर चाहो तो मैं तुम लोगों
को बगल के दूसरे गावँ के तालाब में पहुँचा सकता हूँ। वहाँ तुम सभी सुरक्षित
रह पाओगी। उस तालाब का जल कभी नही सुखता।
प्राण रक्षा के लिए सभी मछलियां बगुले के साथ दूसरे सरोवर में जाने को तैयार हो गयी।
बगुला
अपने चोंच में मछली को पकड़ कर उड़ता और कुछ दूर जाकर एक पेड़ पर बैठ कर
उन्हें खा लेता था। धीरे धीरे सभी मछलियों के साथ ऐसा ही किया। सरोवर से
मछलिया ख़त्म होने लगीं।
उस सरोवर में एक केकड़ा भी रहता था। केकड़े
ने भी बगुले से गुहार लगायी की बगुला भाई मुझे भी यहाँ से ले चलो। बगुला
पहले तो तैयार नहीं हुआ लेकिन केकड़े के बहुत विनय करने पर बगुला मान गया।
क्योंकि सरोवर में अब तो मछलिया भी नहीं बची थी। बगुला केकड़े को अपने चोंच
से नहीं पकड़ पा रहा था। अतः केकड़ा बगुले के गर्दन पर बैठ गया। कुछ दूर
बगुले के साथ उड़ने के बाद केकड़े ने पूछा की बगुला भाई और कितना दूर है
सरोवर ? बगुले ने कहा की अभी दूर है और एक पेड़ पर बैठ गया. केकड़े ने देखा
की पेड़ के नीचे मछलियों की हड्डिया और पंख पड़े हैं। केकरे को समझते देर न
लगी कि बगुले ने छल से भोली भाली मछलियों का शिकार किया है केकरा तो बगुले
के गर्दन पकडे बैठा ही था, अपने दाँतों से बगुले की गर्दन दबाकर धूर्त
बगुले की कहानी ख़त्म कर दिया।
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