राजा भोज विद्वानो और साहित्यकारों को बहुत आदर करते थे ।
उनके राज्य मे कला, साहित्य और संस्कृति का बहुत संवर्धन हुआ । उनके
राज्य मे आम नागरिक भी संस्कृत बोलता था । राजा भोज और लकड़हारा के
संस्कृत संवाद बहुत मशहूर है ।
राजा भोज के दरबार मे महान कवि कलीदास रहते थे । कालिदास आशुकवि थे । आशुकवि यानि जो तुरंत कविता बनादे । राजा भोज के नवरत्नो मे कालिदास को शीर्ष स्थान प्राप्त था ।
राजा भोज कवियों को कविता सुनाने पर पुरस्कृत करते थे ।
राजा भोज के दरबार मे महान कवि कलीदास रहते थे । कालिदास आशुकवि थे । आशुकवि यानि जो तुरंत कविता बनादे । राजा भोज के नवरत्नो मे कालिदास को शीर्ष स्थान प्राप्त था ।
राजा भोज कवियों को कविता सुनाने पर पुरस्कृत करते थे ।
एकबार कालिदास भ्रमण करने निकले थे ।उनहोने एक कवि को सरोवर
किनारे जामुन के पेड़ के नीचे काव्य रचना करते देखा । कवि महोदय कविता
पुरी नही होने से परेशान थे ।
कालिदास ने उनसे उनकी व्यथा जाननी चाही ।
कवि ने कालिदासको अपनी व्यथा सुना दी
सरोवर के जल मे जामुन का फल गिरा था ।मछलियाँ फल के पास आती थीं लेकिन उसे खाती नही थी । कवि इसी को कविता का रुप देना चाहते थे । इस कविता को राज दरबार मे सुनाकर ईनाम पाना चाहते थे । लेकिन उनकि कविता पुरी नही हो पा रही थी ।
कविता के दुसरे पंक्ति की तुकबंदी नहीं हो पा रही थी ।
कालिदास तो आशुकवि थे ही उन्होनें कविता को पुरा कर दिया । वह कविता इस प्रकार थी ।
कालिदास ने उनसे उनकी व्यथा जाननी चाही ।
कवि ने कालिदासको अपनी व्यथा सुना दी
सरोवर के जल मे जामुन का फल गिरा था ।मछलियाँ फल के पास आती थीं लेकिन उसे खाती नही थी । कवि इसी को कविता का रुप देना चाहते थे । इस कविता को राज दरबार मे सुनाकर ईनाम पाना चाहते थे । लेकिन उनकि कविता पुरी नही हो पा रही थी ।
उनकी कविता इसप्रकार थी ।
जम्बु फलानि पक्वानि पतन्ति निर्मले जले तानि मत्स्यानि न खादन्ति । ।-----------------------------------------------------------कविता के दुसरे पंक्ति की तुकबंदी नहीं हो पा रही थी ।
कालिदास तो आशुकवि थे ही उन्होनें कविता को पुरा कर दिया । वह कविता इस प्रकार थी ।
जम्बु फलानि पक्वानि पतन्ति निर्मले जले |
तानि मत्स्यानि न खादन्ति जाल गोटक शंकया ||
अर्थात्
तानि मत्स्यानि न खादन्ति जाल गोटक शंकया ||
अर्थात्
जामुन के फल पके है स्वच्छ जल मे गिरे हैं।लेकिन जाल के गोटे के आशंका से मछलियाँ इसे नही खा रही हैं ।
कालिदास की प्रसिद्धि देखकर दुसरे कवियों को जलन होने लगी ।
एकबार शतंजय कवि ने उन्हें नीचा दिखाने के लिए कविता की रचना की और राजा भोज
के सामने कवि सभा मे ओ कविता सुनाया ।
अपशब्दं शतं माघे भैरवी च शतत्रयं
कालीदासे न गणयन्ते कविरेको शतंजयः
अर्थात्
माघ कवि की रचना मे १०० गलतीयाँ हैं, भैरवी की कविताओं मे ३०० गलतियाँ हैं तथा कालीदास की काव्य रचना मे अनगिनत गलतियाँ हैं
कालिदास ने इस कविता के एक शब्द मे छोटी सी मात्रा जोड़कर कविता के अर्थ को बदल दिया
कालीदास द्वारा कविता
कालीदास द्वारा कविता
आपशब्दं शतं माघे भैरवी च शतत्रयं
कालीदासे न गणयन्ते कविरेको शतंजयः
आप का अर्थ जल होता है
अर्थात्
माघ कवि जल के १०० पर्यायवाची शब्द जानते हैं, भैरवी ३०० और कालीदास
अनगिनत पर्यायवाची शब्द जानते हैं। दुर्भाग्यवश शतंजय कवि जल का एक ही
पर्यायवाची शब्द जानते हैं ।
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
जिसके पास शब्द सामर्थ्य है वह ही बड़ा विद्वान सिद्ध होता है। अतः बच्चों को अपने शब्द सामर्थ्य बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
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