धूर्त और कंजूस सियार



धूर्त और कंजूस सियार
एक कंजूस सियार था।  पर्याप्त आहार होने के बाद भी वह बहुत दुबला पतला था।  उसे जो कुछ भी आहार मिलता वो कंजूसी से उसे भविष्य के लिए संचय करता।
एक बार जंगल में एक शिकारी आया। बड़ी परिश्रम से उसने एक हिरन का शिकार किया।  शिकार को बाँध कर कंधे पर लटका कर धनुष पर तीर संधान किये हुए वो किसी और शिकार की खोज में चल पड़ा।  मार्ग में उसने एक जंगली सूअर देखा। शिकारी अपना तीर धनुष सम्भाल पता तब तक सूअर काफी नजदीक चला आया।  शिकारी और सूअर में मल युद्ध शुरू हो गया। चुकी दोनों ही बलशाली थे अतः एक दूसरे को हरा पाना असम्भव प्रतीत हो रहा था। उन दोनों के आपसी संघर्ष में पैरों से कुचल कर एक सर्प मर गया। अंतत: लड़ते लड़ते दोनों मर गए। एक झाडी में छुप कर सियार ये सब देख रहा था।
धूर्त और कंजूस सियार
कंजूस सियार को एक साथ कई सम्पदा प्राप्त हुई। वह निर्णय करने लगा और मास दिवस गणित करने लगा की कौन सा आहार कितने दिन चलेगा। उसके सामने हिरण, सूअर, शिकारी और सर्प मृत दिख रहे थे।  वह अपने कंजूसी के पैमाने से यह गणना करने में व्यस्त था की कौन से जीव का मांस कितने दिन का आहार है। उसने अपने गणित से यह पाया की एक महीने शिकारी का मांस का आहार चलेगा, हिरण और सूअर दो महीने के लिए पर्याप्त हैं, और मृत सर्प का मांस मैं एक दिन खा लूंगा। कंजूस धूर्त सियार ने सोचा कि अगर शुरुआत कल से करूँ तो एक दिन का और आहार बढ़ जायेगा। यह सोच कर कंजूस ने धनुष की डोर को ही चबा कर रात काटने का निश्चय किया। इसका वर्णन संस्कृत के एक सुन्दर श्लोक में इस प्रकार है।
"मासमेकम नरो याति, द्वौ मासौ मृगसुकरऔ।
 
अहिरेको दिनों याति अद्य भक्षेत् धनेर्गुणम
ऐसा सोच कर जैसे ही वो धनुष की प्रत्यंचा को दाँतों से खींचा प्रत्याचा में लगा तीर उसके गले में बिध गया और उस कंजूस के प्राण पखेरू उड़ गए।


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