किसान और तरबूज की कहानी

एक छोटे से गाँव में एक बहुत ही मेहनती किसान रहता था। एक बार उसने अपने खेत में एक विशाल तरबूज उगाई। किसान अपने तरबूज का बहुत गर्व था और वह जानता था कि, यह सबसे बड़ी तरबूज जो कभी किसी ने देखा होगा। वह टकटकी लगाए अपने तरबूज की रखवाली किया करता था और उसके बारे में सोचा करता था की इस अद्भुत फल का क्या करना है।

पहले उसने सोचा कि इसे बाजार में बेच देना चाहिए, यह उसे अच्छा लाभ देगा। लेकिन फिर उसने सोचा की क्यों न इस तरबूजे को प्रदर्शनी में रखा जाए। वह इसी तरह उधेड़ बन में लगा रहा और अंत में निर्णय किया कि क्यों न इसे राजा को उपहार स्वरुप भेंट कर दूँ। किसान इसी अच्छी सोच के साथ सो गया कि वह राजा को अद्भुत तरबूज भेंट करेगा और बदले में राजा से इनाम पायेगा।

उस राज्य का राजा बहुत दयालु था और प्रजा की देखभाल करता था अतः उसे इसी बहाने अपने राज्य मे टहलने की आदत थी। वह आम आदमी के वेश में अपने नागरिकों को देखने निकल जाता था यह सुनिश्चित करने की सभी सुरक्षित थे हैं। उस रात, राजा एक साधारण आदमी के भेष में किसान के घर से होकर गुजरा। वहां राजा ने एक बड़ा तरबूज देखा और वह इसपर इतना मोहित हो गया, की किसान के दरवाजा पर जाकर उसका दरवाजा खटखटाया।

किसान उठा और बाहर आकर पूछा, "तुम कौन हो और इस समय तुम क्या चाहते हैं?"
राजा ने कहा, "मैं एक गरीब आदमी हूं मैंने इस खेत में यह बड़ा तरबूज देखा और मैं यह तरबूज लेना चाहता हूँ।"
किसान ने कहा "तरबूज नहीं नहीं>>> मैं उसे किसी को नहीं दे सकता !!"

राजा उत्सुक हो गया और पूछा, "क्यों नहीं?? आप इससे क्या करने वाले हैं?"

किसान ने कहा, "मैं इसे अपने राजा को देने के लिए जा रहा हूँ।"

राजा ने किसान से पूछा, "यदि राजा ने इसे पसंद नहीं किया तो क्या होगा?"

"तो फिर वह नरक में जा सकता है.. !!", किसान ने तत्काल जवाब दिया।

इस बातचीत के बाद राजा चला गया, और किसान वापस सोने के लिए अपने विस्तर पर गया।
अगली सुबह, किसान अपने तरबूज के लेकर राजा के महल के पास गया। जब वह राजा को देखा, तो वह उसे पहचान गया, लेकिन बजाय भयभीत होने के और बीती रात राजा के साथ हुए बातचित से, उसने ऐसा नाटक किया जैसे कुछ नहीं जानता हो। अब वह राजा तरबूज भेंट किया और कहा, "महाराज.. यह इस देश का सबसे बड़ा तरबूज है। मैं आपके लिए भेंट स्वरुप लाया हूँ मुझे आशा है कि आप इसे पसंद करेंगे। "

राजा ने कहा, "अगर मैं इसे पसंद नहीं किया तो?"
"ठीक है, उस मामले में आप पहले से ही मेरा जवाब जानते है ..महाराज .. !! "किसान ने कहा।
किसान प्रतिक्रिया सुनकर राजा मुस्कराए और बोले, "मैं तुम्हारा उपहार स्वीकार करता हूँ"। राजा ने न केवल अपने उपहार के लिए किसान को पुरस्कृत किया, बल्कि उसकी बुद्धिमानी और वाक्चातुरता के लिए भी पुरष्कृत किया।
 सारांश बुद्धिमता और प्रतिउत्पन्नमतित्व आपको हर विषम परिस्थिति से उबार लेते हैं

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