व्यवसाय के लिए धन मूल आवश्यकता नहीं। किसी भी व्यवसाय के लिए धन की आवश्यकता होती है लेकिन धन से भी जरुरी है व्यवसायिक बुद्धि।
दो व्यवसायी आपस में बात कर रहे थे। पहले व्यवसायी का व्यापर सही चल रहा था दूसरे के पास काफी आर्थिक तंगी थी वाणिज्य में घाटे से उसके पास नए व्यवसाय के लिए पैसे नहीं थे। वह अपने मित्र से यही दुःख बार बार रो रहा था। पहला व्यापारी जो धनि था उसे व्यवसाय का अनुभव था। वह अपने मित्र से बार बार यही कहता वाणिज्य के लिए धन का होना कोई जरूरी नहीं उसके लिए तो व्यावसायिक बुद्धि ही पर्याप्त है।
निर्धनता से दुखी दूसरे मित्र को ये बात काफी अटपटी लगी वह झुंझला कर बोला। मित्र तुम कैसी अटपटी बात कर रहे हो भला बिना पैसे के रोजगार कैसे हो सकता है क्यों मेरे निर्धनता का उपहास कर रहे हो। पहले मित्र ने उसे समझते हुए कहा मैं सच कह रहा हूँ। ये जो तुम्हारे बगल में चूहा मरा पड़ा है न तुम इससे भी व्यवसाय कर सकते हो।
दूसरे मित्र ने वह मृत चूहा उठाया और साप्ताहिक बाजार की ओर दोनों चल पड़े। बाजार में एक बनिया पालतू जानवर कुत्ते बिल्ली बेचता था। उसके जानवरो को खाने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था। उसने दूसरे बनिए के हाथ में चूहा देखा तो अपने बिल्ली के लिए खरीद लिए।
इस प्रकार मृत चूहे से मिले पैसे से बनिए ने चना खरीद कर बेचना शुरू किया। थोड़ा सा चना बेचने से जो मुनाफा हुआ उससे वह फिर और ज्यादा चना ख़रीदकर बेचना शुरू किया। इस तरह उसका मुनाफा बढ़ता गया और वो अपना व्यवसाय भी बढ़ता गया।
इस तरह एक मृत चूहे के मुनाफे से वह एक धनी व्यवसायी बन गया।
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