टोपी विक्रेता और बंदर

एक टोपी विक्रेता था । वह गावँ शहर घूम घूम कर टोपी बेचा करता था । एक दिन वह अपने व्यापर के लिए एक गावँ में घूमकर खूब फेरी लगाया । सुबह से दोपहर हो गयी एक भी टोपी नहीं बिकी । दिन ढलने पर वह शहर की ओर जाने लगा । रास्ते में एक पेड़ की घनी छाव दिखी। उसने अपने साईकिल को पेड़ से लगाया तथा प्रचार के लिये जो टोपी पहन रखा था वही पहने सो गया ।


थके हुए टोपी विक्रेता को पेड़ की ठंढी छावं में शीघ्र ही नींद लग गयी । उस पेड़ पर कुछ बन्दर बैठे थे । बंदरों ने उस टोपी विक्रेता की तरफ बड़े गौर से देखा । फिर पेड़ पर से एक बन्दर उतरा और साईकिल की हैंडल पर रखी टोपी को उतारकर पहन लिया और पेड़ पर जा बैठा । अब उस बन्दर की देखा देखी एक एक कर सभी बन्दर उतरते और टोकरी में झलक रही टोपियों में से एक निकालते और पहन कर पेड़ पर बैठ जाते । इस तरह टोपी विक्रेता की टोकरी खाली पड़ गयी। पेड़ पर एक बन्दर बिना टोपी के रह गया था । वह बन्दर भी नीचे उतरा और फेरीवाले विक्रेता के सिर से टोपी उतार कर पहन लिया और पेड़ पर बैठ गया।

कुछ देर बाद फेरीवाला जब सर खुजलाते उठा तो उसे महसूस हुआ की उसके सर पर टोपी नहीं है। उसने साईकिल पर रखी अपनी टोपियों की तरफ देखा तो झोली खाली थी। वह अत्यंत चिंतित हुआ इधर उधर देखते हुए उसकी दृष्टि पेड़ पर बैठे बंदरों पर पड़ी विक्रेता स्तब्ध रह गया। वह लाचार था बंदरों से टोपी ले लेना किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं था।

वह निराश होकर वहां से जाने की तैयारी करने लगा। तभी वहाँ से एक बुजुर्ग़ व्यक्ति गुजर रहे थे।  उन्होंने टोपी पहन रख थी। पेड़ पर टोपी पहने बैठे बंदरों को देख कर उन्हें हंसी आयी। वो उस टोपी विक्रेता के पास जाकर इसका रहस्य जानना चाहे। टोपी बेचने वाले ने उन्हें बताया की ये सभी बन्दर मेरे टोकरी से टोपी निकाल निकाल पहन लिए हैं जब मई सो रहा था। और तो और इन बंदरों ने मेरे सिर पर से भी टोपी उतार रखी है।

बुजुर्ग व्यक्ति समस्या को ठीक से समझ गए और उन्हें इसका समाधान भी सूझ गया। उन्होंने बंदरों के करीब जाकर अपने सिर से टोपी उतार कर फेंकने का नाटक किया। देखा देखी सभी बंदरों ने अपनी अपनी सर से टोपी उतार कर फ़ेंक दिया। अब टोपी बेंचने वाला बनिया एक एक टोपी इकठ्ठा किया और अपनी टोकरी में रख लिया। इस तरह उस बुजुर्ग व्यक्ति की चतुराई से टोपी विक्रेता की सारी टोपियां वापस मिल गयीं। 

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