आरुणि की गुरुभक्ति

महर्षि आयोदधौम्य का आश्रम 

पुराने ज़माने में छात्र गुरुकुल आश्रम में पढ़ा करते हैं। छात्र गुरुकुल आश्रम में रहकर गुरु की सेवा किया करते थे और अध्ययन भी किया करते थे। आश्रम में शिक्षा पूरी कर फिर छात्र अपने घर वापस जाते थे। छात्र गुरुभक्त हुआ करते थे। ऐसी कई कहानियां हैं, जिनमे छात्रों की महान गुरुभक्ति को दिखाया गया है। ऐसा ही एक गुरुभक्त छात्र था आरुणि, आइये जानते हैं आरुणि की गुरुभक्ति को।

महर्षि आयोदधौम्य का आरुणि को आदेश 


 आरुणि महर्षि आयोदधौम्य के आश्रम  में रहता था। आश्रम में रहकर वह शिक्षा  ग्रहण कर रहा था और गुरु की सेवा भी कर रहा था। आश्रम में छात्रों को कई जिम्मेवारी  होती थी। छात्र आश्रम में कृषि कार्य  और पशुओं  के लिए चारा का भी व्यवस्था किया करते थे। बरसात का मौसम था और इस मौसम में धान की खेती होनी थी। धान की खेती के लिए खेत में पानी जमा होना जरुरी था। लोग  खेती के लिए बड़ी बेसब्री से बारिस का इन्तजार किया करते थे। एक दिन शाम को तेज बारिस होने लगी सभी  खुश थे कि धान की खेती के लिए प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध  जायेगा।  लेकिन गुरु आयोदधौम्य चिंतित हुए की उनके एक खेत के  कमजोर होने से सुबह तक उसमे खेती के लिए पानी नहीं टिकेगा।

आरुणि का खेत में पानी रोकना 


उन्होंने अपने भरोसेमंद छात्र आरुणि को बुलाया  और कहा --> बेटा आरुणि खेत पर जाओ और कोई ऐसा यत्न करों कि सुबह तक  खेत में पानी  टिका रहे। गुरु की आज्ञा शिरोधार्य कर  आरुणि खेत पर चल पड़ा। वहां  जाकर आरुणि ने देखा, खेत के कमजोर मेड़ों से पानी बह रहा है। उसने चारों मेड़ों को मरम्मत करने का प्रयास किया। तीन तरफ के मेड़ों का  पानी तो रु क गया लेकिन चौथे मेड से पानी नहीं  रुक रहा था। आरुणि पानी  रोकने का  बहुत प्रयास किया , अंत में जब पानी  नहीं रुका तो आरुणि ने मेड पर लेट जाने का निर्णय किया। मेड पर रुक जाने से  रुक गया लेकिन  सुबह तक पानी  रोके रखने के लिए आरुणि को रात भर मेड पर  लेटे रहना जरुरी था।

आरुणि की गुरुभक्ति कसे गुरु का प्रसन्न होना 


इधर गुरु जी  आरुणि का इन्तजार कर रहे थे। काफी  देर हो  गयी आरुणि वापस नहीं लौटा  तो गुरु जी को चिंता हुई। गुरूजी कुछ शिष्यों के साथ खेत की ओर चल पड़े। गुरु जी वहां पहुँच कर देखते हैं कि आरुणि खेत की मेड पर लेटा है। गुरु जी ने आरुणि को उठने को कहा तथा छात्रों की मदद से उस मेड की मरम्मति करवाई।
गुरु जी आरुणि की गरु भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए तथा उसे तेजस्वी और दीर्घायु होने का बरदान दिया