भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता, तृष्णा न जीर्णा
वयमेव जीर्ण. अर्थात भौतिक विषयों के भोग नहीं खत्म हुए हम मनुष्यों का जीवन ही
समाप्त हो गया . तृष्णा ख़त्म नहीं हुई लेकिन विषय रसों का भोग करने वाली हमारी
इन्द्रियाँ ही जीर्ण हो गयी . किसी आदमी के मुह में एक भी दांत नहीं हो लेकिन चने
चबाने की तृष्णा use भी होती है . इस कहानी में एक बकरे के माध्यम से इस बात पर
प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है. इस कहानी का पात्र रजा का एक बकरा है जिसे
पेट भर खिला कर संतुष्ट कर देना है जिससे उसके सामने घास ले जाने पर वह खाने से
इंकार कर दे .
कहानी कुछ इस प्रकार है . एक रजा था वह धर्म
शास्त्र का ज्ञाता था . उसने अपने राज्य में एक प्रतियोगिता रखी . इस प्रतियोगिता
के अनुसार राजा के बकरे को पेट भर घास खिलाकर संतुष्ट कर देना है जिससे वह सामने
पड़ी घास को खाने में रूचि नहीं दिखाए . इस प्रतियोगिता को जितने वाले को यथोचित
पुरस्कार दिया जायेगा. पुरे राज्य में इस
प्रतियोगित की ढोल बजाकर घोषणा कर दी गयी . राजा की घोषणा सुनकर बहुत से प्रतियोगी
इस प्रतियोगिता में भाग लेने आये . प्रतिभागी बारी बारी से बकरे को लेकर चराने के
लिए ले जाते और शाम को जब बकरे के साथ लौटते तो राजा उस बकरे के तृप्त होने की
परीक्षा लेते . जब रहा हाथ में घास लेकर बकरे के पास जाते तो बकरा घास खाने लगता .
इसप्रकार ये प्रतियोगिता पांच दिन तक चली. प्रतियोगियों के लाख प्रयास के बाद भी
बकरा पूर्णतः तृप्त नहीं हुआ और परीक्षा के समय राजा के हाथ में घास देखकर उसपर
मुह मार देता था.
इसी तरह सभी प्रतियोगी फेल होने लगे . इस बात
की खबर एक ब्राह्मण तक पहुंची . ब्राह्मण ज्ञानी था उसने राजा के इस प्रतियोगिता
का रहस्य जान लिया . अगले दिन ब्राह्मण प्रतियोगिता में भाग लेने राजा के दरबार
में पहुंचा . ब्राह्मण राजा के बकरे को लेकर चराने गया और साथ में एक डंडा भी लेते
गया . बकरा जब भी घास खाने के लिए मुंह आगे बढाता ब्राह्मण उसे डंडे से मारता . इस
तरह बार बार डंडे की धमकी से बकरा समझ गया की घास खाना सही नहीं है . अब बकरा घास
को देखकर दूसरी तरफ मुह घुमा लेता था . सच
पूछो तो बकरा तृप्त हो गया था .
ब्राह्मण बकरे को लेकर राजा के पास पहुंचा .
राजा ने या जांच करने के लिए की बकरा
सचमुच तृप्त हुआ है या नहीं उसके सामने घास रखा . घास सामने देखकर बकरा दूसरी ओर
मुह घुमा लिया . इस कहानी का तात्पर्य यह है की इन्द्रियां विषयों के भोग से कभी संतुष्ट नहीं होती. यहाँ तक की
इन्द्रियां भोग को भोगने में असमर्थ हो जाती है तब भी भोगों को भोगने की कामना मन
में बनी रहती है . अतः इन्द्रियों पर अंकुस रखना जरुरी है
शास्त्रों ने मन इन्द्रिय और आत्मा के बारे
में एक बहुत ही सटीक उदहारण प्रस्तुत किये हैं .
इस शरीर रूपी रथ के इन्द्रिय घोड़े हैं, मन लगाम है, बुद्धि सारथि है तथा आत्मा इस रथ का रथी है .
अगर बुद्धि रूपी सारथि ने मन रूपी लगाम को ढीला
किया तो इन्द्रय रूपी घोड़े इस शरीर रूपी रथ पर आरूढ़ आत्मा को गर्त में धकेल सकते
हैं .
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