मातृभाषा के प्रति बढती उपेक्षा की भावना

Growing Sense of Neglect to the Native Language



मैं अपने घर पर माता, पिता, भ्राता और भार्या से भी अपनी मातृ भाषा भोजपुरी मे बात करता हूँ .
इसके विपरीत
यदि मेरे बच्चे मातृभाषा के प्रति उदासीन होकर हिंदी के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी. बच्चे बड़ी सहजता से भोजपुरी के शब्दों का हिंदी अनुवाद कर लेते हैं .
दहारण के लिए
अगर मैं अपने बच्चे से पूछूं
“बाबू का करतार”
उत्तर मिलेगा
“खा रहा हूँ पिता श्री “
मैं अपने गावं गया था तो पिता जी को यह बात रास नहीं आई .
मुझसे गावं के एक व्यक्ति मिलने आये . उन्होंने मुझसे भोजपुरी में बर्तालाप किया .
फिर घर की आँगन से खेलते हुए मेरा आत्मज निकला .
उस व्यक्ति ने बच्चे के तरफ इशारा करते हुए पूछा?
“इ राउर लईका हउवन”
मैंने कहा
“ह हमरे बेटा  हउवन”

फिर उस व्यक्ति ने बड़ी कठिनाई से शब्दों को सजोते हुए मेरे पुत्र से पूछा

“बाबू कहा रहत हो ?
बेटे का जबाब
“दिल्ली रहता हूँ .

.....
“मुझे दिल्ली लेई चलोगे”
“हाँ ले चलूँगा “

मेरे पिता जी वही बैठे थे सब देख रहे थे .
उस व्यक्ति के जाने के बाद उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा ! लोग किस तरह अन्धानुकरण कर रहे हैं विवेक शून्य होकर ये देख रहे हो न ?
मैंने तात्पर्य नहीं समझा
पिताजी बोले !
“हिंदी बच्चों के लिए विशेष अपरिहार्य भाषा बन गयी . जैसे आपको मवेशियों से बात करने के लिए अलग भाषा(विशेष शब्द सांकेतिक भाषा)  का प्रयोग करना पड़ता है. ठीक उसी प्रकार ये आजकल के बच्चे भी अपनी मातृभाषा भोजपुरी नहीं समझ पा रहे हैं .”

इस quote  के बाद मैं उनके बिचार से सहमत हो गया . और अपने बच्चों को परस्पर पारिवारिक बोलचाल में हिंदी के प्रयोग पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर दिया .

आप सभी मित्रों से निवेदन है की आप जिस पवित्र भूभाग से सम्बन्ध रखते हों आप उस क्षेत्रीय भाषा को उपेक्षा का शिकार मत होने दीजिये.    


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ