एक बार की बात है । राजा के पलंग में एक चीलर रहता था । चीलर बड़ी चालाकी से राजा के सो जाने के बाद राजा के रक्त का पान करता था ।
एक
दिन राजमहल के सेवक के माध्यम से शयन कक्ष में खटमल आ गया । खटमल चुपके चुपके
राजा के पलंग के पास जा पहुँचा । वहाँ छुपने का कोई उपयुक्त जगह ढूँढ़ने
के क्रम में उसकी मुलाकात चीलर से हो गयी । चीलर ने अपने यहाँ आये अतिथि का
यथोचित सत्कार किया । फिर दोनो अपने अपने जीवन यापन और जीवन शैली के बारे
में एक दूसरे को बताने लगे ।
पहले खटमल ने चीलर से अपनी व्यथा सुनायी ।
खटमल ने कहा -- मित्र बहुत मुश्किल से राजा के क्रूर सेवकों के बीच जीवन गुजर रहा है । पेट भर रक्त भी नहीं मिल पाता और निशिदिन प्राण संकट बना रहता है । तुम्हारा तो यहाँ राजा के शयन कक्ष में बढिया से गुजर बसर हो रहा होगा ?
चीलर ने कहा --सुरक्षित जगह और मेरे सावधानी से
दिन अच्छे कट जाते हैं । राजा के कोमल अंगों का शोणित पान करने का सौभग्य
प्राप्त है मूझे । मैं राजा को गहरी नींद में सो जाने तक इंतजार करता हूँ ।
चीलर से यह सूनकर खटमल बहुत अधीर हो चला वह राजा का खून को चखने के लिय मचलने लगा । चीलर ने भरोसा दिलाया कि मैं आज़ रात को तुम्हे उपयुक्त समय पर राज शोणित चखने का मौका दूँगा ।रात
हुई राजा अपने शयन कक्ष में आ गये । चीलर ने खटमल को समझाया कि ,
जल्दीबाजी मत करना पूरी तरह से नींद में आने पर ही नृप के समीप जाना । थोड़ी
देर तो खटमल मान गया , लेकिन उसकी अधीरता ने बाध्य कर दिया । राजा अभी
पूरी तरह नींद में सोया न था तभी खटमल ने हमला कर दिया ।
राजा की वेदना स्वर सूनकर कई सेवक शयन कक्ष में आ गये । उन्होंने खटमल को ढूँढ निकाला और साथ में चीलर भी पकड़ा गया । इस तरह एक दुष्ट मित्र की घृष्टता से मित्र की जान चली गयी