श्रद्धालु और ईर्ष्यालु की कहानी

ईर्ष्यालु व्यक्ति की कहानी।  
"श्रद्धालु" और "ईर्ष्यालु" नाम के दो पडोसी थे। दोनों में आपस में काफी घनिष्ठता थी। दोनों ने मिलकर तपस्या करने का विचार किया। दोनों तपस्या पर चले गए और भगवान शिव की आराधना करने लगे।  बहुत दिन तक तपस्या में लगे रहे। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए।  भगवान शिव ने उन दोनों से वर मांगने को कहा ।

श्रद्धालु ने भगवान् शिव से वरदान माँगा -->
भगवन मैं जब भी आपकी पूजा  अर्चना करके आपसे कोई वरदान मांगू तो आप मुझपर प्रसन्न होकर वरदान को सफल बनाये। 
भगवान शिव ने कहा तथास्तु !

अब "ईर्ष्यालु" की बारी थी -->

"ईर्ष्यालु" ने भगवान शिव  से वरदान माँगा। भगवान आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि जो कुछ वरदान में "श्रद्धालु" को मिले उससे दोगुना मुझे मिल जाए।  

भगवान आशुतोष ने एवमस्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए।



"श्रद्धालु" भगवान शिव की नित्य पूजा पाठ करता और अपने जरुरत के अनुसार शिव से वरदान माँग लेता। 

"श्रद्धालु" ने एक दिन पूजा करके भगवान शिव से अपने लिए एक सुन्दर सा घर माँगा। भोले नाथ के वरदान के अनुसार "श्रद्धालु" को  १ सुन्दर सा घर मिल गया साथ ही पडोसी "ईर्ष्यालु" को भी २ घर मिल गए। "श्रद्धालु" इस घर में सुख पूर्वक रहने लगा।  

कुछ दिन बाद "श्रद्धालु" ने अपने घर के पास एक मीठे जल के कुएं की याचना किये। शीघ्र ही शिवभक्त के घर के आगे एक कुआँ तैयार हो गया। वरदान की शर्त के अनुसार "ईर्ष्यालु" को भी २  कुआँ मिल गया। 

इसतरह भक्त "श्रद्धालु" जो कुछ भी मांगता "ईर्ष्यालु" को उससे  दोगुना मिल जाता। 

"श्रद्धालु" को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी। "ईर्ष्यालु" को "श्रद्धालु" से सबकुछ दोगुना मिलने के बाद भी सुख देखा नहीं जा रहा था। "ईर्ष्यालु" अपने पडोसी "श्रद्धालु" के प्रति ईर्ष्या और कुटिलता दर्शाने लगा। "ईर्ष्यालु" के इस व्यवहार से "श्रद्धालु" को बहुत दुख होता। 

"श्रद्धालु" दिखने में भोला प्रतीत होता था लेकिन था बुद्धिमान।  उसने "ईर्ष्यालु" को सबक सिखाने की ठानी। 

शिव की पूजा अर्चना करके "श्रद्धालु" ने भगवान शिव से वरदान माँगा की भगवान मेरे एक आँख ले लो। 
भगवान शिव को अपने भक्त की इस याचना पर आश्चर्य तो जरूर हुआ।  लेकिन वरदान की शर्त के अनुसार "श्रद्धालु" की एक आँख की रोशनी चली गयी। साथ साथ पडोसी "ईर्ष्यालु" भी सुबह सुबह दोनों आंखों से अँधा हो गया। 

"ईर्ष्यालु" को अपने किये की सजा मिल गयी थी वो नेत्र विहीन हो गया था।
"ईर्ष्यालु" ने अपने बेटे को "श्रद्धालु" के घर झाँकने को कहा और उसकी स्थिति के बारे में पूछा। बेटे ने कहा -->पिता जी !  "श्रद्धालु " चाचा तो एक आँख से काने हो गए हैं।

"ईर्ष्यालु" को अपने किये पर बहुत पछतावा हो रहा था। कही "श्रद्धालु" ऐसे ही एक दो और वरदान न मांग बैठे इसकी चिंता सता रही थी। इसलिए अपने बेटे की अंगुली पकड़ कर पडोसी के घर पहुँच गया तथा क्षमा याचना की और किये हुए कुकृत्यों का प्रायश्चित किया। 

इस प्रायश्चित से उसके सारे पाप धूल गए। "ईर्ष्यालु" के दोनों नेत्र तो वापस नहीं मिल पाए लेकिन ईर्ष्या की अग्नि जो उसे जला रही थी वो हरदम के लिए शांत हो चुकी थी। वो पहले से ज्यादा सुखी अनुभव कर रहा था।   

Moral -> ईर्ष्या से सुख नहीं मिलने वाला चाहे आपके पास जितनी सम्पति मिल जाए। 
   

  

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