हमारा भारत वर्ष सदियों से ऋषि मुनियों का देश रहा है. मोह और संशय का शमन करने के लिए लोग संतों के शरण में जाते रहे हैं .लेकिन कुछ पाखंडियों ने संत शब्द के मर्यादा का लाघव किया है .
यथार्त तो ये है कि संत मोह और संशय का शमन करने वाले नाश करने वाले होते हैं . लेकिन आजकल के ढोंगी संत संशय हरने वाले नहीं लोगों को संशय में डालने वाले हैं . जो इन गुरुओं और बाबाओं के सरण में गया वो इनकी माया जाल में फँस कर रहा जाता है .
कलियुग के संतों में बारे में महाकवि तुलसीदास ने बताया है ->
नारी मरी गृह सम्पति नाशी | माथ मुडाई भये संस्यासी ||
कलियुग के संत स्वार्थ वश संत बनते हैं और लोगों के बीच ऐसा पाखण्ड करते हैं जैसे इनके अनुयाई को लगता है यही भगवान है जैसे हाल ही के बाबा डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पाखंडी "राम रहीम ".
तुलसीदास सूरदास जैसे महान संतों ने कभी अपने अनुयायियों से अपनी पूजा नहीं करवाई . उन्होंने अपने अनुयायियों को यही बताया की ईश्वर ही वन्दनीय है गुरु पथ प्रदर्शक है . तभी तो अरबों लोगों के जिह्वाग्र पर रहने वाले तुलसी दास एक संत हैं भगवान नहीं . सूरदास भी संत हैं भगवान नहीं .
अब इन कलियुग के भगवानों की सूचि पर ध्यान दीजिये
१) बाबा रामपाल
२) साईं बाबा
३) राम रहीम
४) सत्य साईं
५) प्रेम साईं
६ आसाराम
सूचि तो काफी लम्बी है लेकिन उदाहरनार्थ इतने ही काफी है .
जैसे एक blanket begger साईं भगवान के रूप में लोगों में लोकप्रिय हुआ . वैसे ही बाबा राम रहीम अपने अनुयायिओं में लोकप्रियता पाने लगा था .
इन बाबा लोगों को प्रश्रय देता कौन है ?
सनातन विरोधी ब्राह्मण विरोधी जितने भी संस्कार हीन लोगों की भीड़ है वही इन बाबा लोगों के अंध भक्त बनते है .
गुरु बनाने की जो पुरानी परंपरा थी अगर हम उसका अनुसरण करते रहते तो आज हमारा समाज इतना पथ भ्रष्ट नहीं होता
गृहस्थ का गुरु गृहस्थ और सन्यासी का गुरु सन्यासी होता है .
अब यदि गृहस्थो की भीड़ सन्यासियों के पास दीक्षा लेने पहुँच जायेगी तो अनर्थ होगा ही . सन्यासी की जीवन शैली अलग है गृहस्थ की जीवन शैली अलग है. दोनों के कर्त्तव्य पथ अलग हैं.
गृहस्थ के कुल गुरु हुआ करते थे . जिससे गुरु की परपरा चलती थी . सभी लोगो इस परंपरा को तोड़ने में लगे हैं . एक घर में कई गुरु आ रहे है पत्नी के गुरु अलग पति के गुरु अलग और लड़का कोई गुरु अलग से लाता है .
ब्राह्मण पथ प्रदर्शक थे लेकिन आज कोई ब्राह्मणों की नहीं सुनेगा