ब्राम्हण, सुनार और महाकवि कालिदास

Brahman Sunar aur Mahakavi Kaali Daas 

राजा भोज बड़े न्यायप्रिय थे । उनके राज मे कठिन व जटिल आपराधिक  विवादों का सही न्याय होता था ।
आपराधी चाहे जितनी चालकी से अपराध कर साक्ष्य मिटाना चाहे राजा भोज के न्याय प्रक्रिया से बचना  मुश्किल था ।
उनके राज्य के दो ग्रामीण  धन अर्जन करने विदेश यात्रा  पर गये । उन दोनो मे से एक ब्राम्हण था तथा दुसरा सुनार(स्वर्णकार ) था । दोनों  विदेश  मे परिश्रम कर  के धन कमाये । ब्राम्हण की पंडिताई खुब चली और वह खुब पैसा  कमाया ।सुनार के सोने चाँदी का व्यवसाय भी खुब चला । लेकिन ब्राम्हण की कमाई सुनार  की कमाई से कई गुना  ज्यादा  थी । सुनार को ब्राम्हण की कमाई देख के  जलन होते रहती थी।  लेकिन धूर्त सुनार अपने ईर्ष्या को ब्राम्हण के सामने प्रकट नहीं होने देता था।

बहुत दिनों बाद दोनों ने  अपने गावँ जाने का निश्चय किया दोनों साथ ही चल पड़े। रास्ते में जंगल का रास्ता पड़ता था।  पुराने ज़माने में मार्ग की यात्रा  बहुत कठिन होती थी।  रास्ता कई विहड़ जंगलों से होकर गुजरता था। मार्ग में हिंसक जानवरों से सुरक्षा के लिए यात्री अपने साथ अस्त्र शस्त्र लेकर चलते थे। मार्ग में हिंसक जानवरों से सुरक्षा के लिए सुनार ने एक तलवार ले लिए और दोनों अपने गावँ को निकल पड़े।

ब्राम्हण और सुनार दोनों अपने साथ कुछ स्वर्ण मुद्राये लेकर जा रहे थे।  अतः दोनों मार्ग में सम्भव किसी भी अप्रिय घटना से सावधान होकर जा रहे थे। ब्राम्हण के पास सुनार से ज्यादा धन था।  ब्राम्हण को पोटली सुनार की पोटली से भारी थी। सुनार को ब्राम्हण के धन पर लालच आ गया। वह ब्राम्हण की हत्या कर सारा धन ले लेना चाहता था। मौका पाकर उसने ब्राम्हण पर हमला बोल दिया।

ब्राम्हण ने सावधान होकर सुनार से विनती किया।  तुम मुझे मार दो लेकिन ये मंत्र मेरे घर पर पहुंच देना।
ब्राम्हण ने एक पत्र पर चार अक्षर "अ प्र शि ख" लिख कर दे दिए। सुनार ने उस सन्देश को अपने लिए कोई परेशानी नहीं समझ कर अपने पास ले लिए। ब्राम्हण की हत्या कर वह अपने घर समूचे धन के साथ पहुँच गया। ब्राह्मण के  घर घड़ियाली आंसू बहते हुए गया और ब्राम्हण का लिखा हुआ पत्र दे आया। ब्राम्हण पत्नी से सुनार ने कहा की मार्ग में हम दोनों साथ लौट रहे थे।  पंडित जी को बाघ मारकर खा गया।  किसी तरह मैं अपनी जान बचाने में सफल रहा।

ब्राम्हण परिवार बहुत शोकाकुल था। उस चिट्टी पर लिखे गए चार अक्षर का अर्थ  किसी को समझ में नहीं  आ रहा था। शोकाकुल ब्राम्हण पत्नी ने राजा भोज के दरबार में गुहार लगायी। राजा भोज ने अपने सभी विद्वानों से इस चार अक्षर के रहस्य को सुलझाने के कहा। लेकिन किसी विद्वान ने कोई सार्थक अर्थ नहीं निकाले इन चार अक्षरों के।
अंत में महाकवि कालिदास को यह समस्या सुलझाने को कहा गया। कालिदास तो आंसू कवि थे ही उन्होंने  तुरंत एक काव्य रचना कर दी। जो काव्य रचना हुई उससे बहुत बड़ा आपराधिक रहस्य का उद्घाटन हुआ।
अ से ->अनेन स्वर्णकारेण
प्र  से ->प्रदेशे निर्जने वन
शि से ->शिखामादाय हस्तेन
 ख से ->खड्गेन निहतः शिर: यात्रा पर 

अनेन   स्वर्णकारेण,  प्रदेशे  निर्जने  वन।
शिखामादाय हस्तेन, खड्गेन निहतः शिर: ।।
अर्थात इसी सुनार ने प्रदेश के निर्जन वन में ब्राम्हण के शिखा को हाथ से पकड़ कर खड्ग से शिर काट दिया।


इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

विद्या बुद्धि से युक्त  व्यक्ति सदा अजेय  रहता है 

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3 टिप्पणियाँ

  1. कहानी गलत है। क्योंकि इसमें राजा विक्रमादित्य के दरबार में बात पहुंची, और फिर प्रेत और वररुचि के मध्य भी बात हुई, उसका भी एक श्लोक है।

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    1. हाँ, आप सही कह रहे हैं। इसमें विक्रमादित्य के दरबार की घटना है। तथा प्रेत और वररुचि का वर्णन है।
      प्रेत कहता है- दिवा निरीक्ष वक्तव्यं.... आगे का याद नहीं है।

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  2. Apki pratikriya grahy hai ! kripaya sandarbhon ke saath correction sujhayen main ise sahi karunga. Dhanybad

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